लहंगे कितने प्रकार के होते हैं ?
आधुनिक युग में लहंगे का प्रचलन बढ़ रहा है अतः: जानिए लहंगे के बारे में सामान्य जानकारी व लहंगे कितने प्रकार के होते हैं ? तथा साधारण लहंगे और कलीदार लहंगे में क्या अंतर है ?

लहंगे के बारे में सामान्य जानकारी
लहंगा एक राजस्थानी पोशाक है। राजस्थान के सभी भागों में इसका पूर्ण रूप से प्रचलन है। लहंगा मुख्य रूप से ओढनी के साथ पहना जाता है। ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली स्त्रियां अधिकतर लहंगा कम लंबाई का पहनती है तो शहर व उसके आसपास के क्षेत्रों में रहने वाली महिलाएं इसे कुछ अधिक लंबा पहनती है।
ग्रामीण क्षेत्र की स्त्रियों के पैर के टखने तक एवं उस पर पहने जाने वाले आभूषणों से ऊपर तक ही लहंगे की लंबाई रखी जाती है। शहर व उसके आसपास में रहने वाली स्त्रियों के लहंगे की लंबाई टखने से नीचे तक जिसमें पेर का कोई भाग दिखाई नहीं देता है, तक रखी जाती है। वैसे शेयरों में आजकल धोती का प्रचलन अधिक हो गया है, पर फिर भी उत्सव, वार-त्यौहार एवं विवाह आदि के अवसर पर रंग बिरंगे एवं गोटा किनारे आरी-तारी तथा विभिन्न प्रकार के बेल बूटे के लहंगे पहने हुए स्त्रियों दिखाई देती है।
विवाह आदि पर तो लहंगा और ओढनी पहनना तथा देना एक शगुन की बात माना जाता है। एक समय था जब राजस्थानी नारी का लहंगा बनाने के लिए पूरा मलमल का थान लग जाया करता था। उस समय गोगरी के नीचे मंगजी के सहारे-सहारे , गोटा, किनारी, जरी आदि का काम बहुत ही सुंदर ढंग से किया जाता था।
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आज भी इस प्रकार के लहंगे बनाए जाते हैं लेकिन उनका घेर 3 मीटर से 5 मीटर तक ही रखा जाता है। आज भी ग्रामीण क्षेत्र में हर समय पहनने के लिए कई प्रकार की छपाई किए हुए कपड़े के लहंगे पढ़ने जाते हैं तथा कुछ क्षेत्र विशेष की छपाई अत्यधिक प्रसिद्ध है। जैसे जयपुर में सांगानेर रोड बगरू की छपाई, बाड़मेर की छपाई और जैसलमेर तथा जालौर का कांच का काम बहुत प्रसिद्ध है।
आजकल हम देखते हैं कि विदेशी से आने वाले पर्यटकों के लिए यह लहंगा बहुत ही आकर्षण का केंद्र बना हुआ है और अधिकांश विदेशी स्त्रियां यहां से लहंगा ओढ़नी खरीद कर ले जाती है तथा बड़े ही उत्साह के साथ इसे पहनती है।
लहंगे कितने प्रकार के होते हैं ?
लहंगे मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं-
1. साधारण लहंगा, 2. कलीदार लहंगा
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साधारण लहंगे और कलीदार लहंगे में क्या अंतर है ?
1. साधारण लहंगा: यह लहंगा, लंबाई के बराबर 4 या 5 टुकड़ों का बनाया जाता है। इन कपड़े के टुकड़ों को जोड़कर ऊपर के हिस्से में प्लेट डालकर कमर की नाप के अनुसार नेफा लगा दिया जाता है तथा नीचे की तरफ उरेबी कपड़े की मंगजी लगाई जाती है।
यह मंगजी अधिकतर दूसरे रंग के कपड़े की लगाई जाती है, लेकिन आजकल लहंगे के रंग के जैसे ही कपड़े की मंगजु का प्रचलन हो रहा है। इसके पश्चात मंगजी के ऊपर वाले भाग में गोटा, किनारी, आरी-तारी लगाकर के लहंगे को सुंदर एवं मूल्यवान बना दिया जाता है।
2. कलीदार लहंगा: इस लहंगे में 12 से 20 या इससे अधिक कलियां होती है। इन कलियों वाले लहंगे में नीचे के बाद में अधिक घेर होता है और ऊपर के भाग में घेर कम होता है। इसमें नीचे के भाग में मंगजी आदि लगाकर के उसके ऊपर के भाग में गोटा, किनारे या गोटे के बने हुए फूल-बेल आदि लगाकर लहंगे को सुंदर एवं मूल्यवान बना दिया जाता है।
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लहंगे अधिकतर मुलायम कपड़ों के बनाए जाते हैं, जैसे पापलीन, छिंट ,साठरग, नरमा एवं सिल्क आदि। लहंगे में कपड़ा घेर के आधार पर लिया जाता है। अगर पहनने वाली अधिक घेर पसंद करती है तो 6 मीटर तक कपड़ा भी लग सकता है और अगर घेर कम रखना है तो 3 मीटर में लहंगा बन जाता है।