मौसम और जलवायु के अनुसार भारत में कौन से कपड़े पहने जाते हैं ?

मौसम और जलवायु के अनुसार भारत में कौन से कपड़े पहने जाते हैं ?

भारत के विभिन्न क्षेत्रों औल प्रदेशों में विभिन्न प्रकार की जलवायु और ऋतु परिवर्तन होता है। जानिए मौसम और जलवायु के अनुसार भारत में कौन से कपड़े पहने जाते हैं ?

मौसम और जलवायु के अनुसार भारत में कौन से कपड़े पहने जाते हैं ?
मौसम और जलवायु के अनुसार भारत में कौन से कपड़े पहने जाते हैं ?

मौसम और जलवायु के अनुसार भारत में कौन से कपड़े पहने जाते हैं ?

आज की सभ्यता के युग में शरीर का नंगापन सभ्यता एवं बर्बरता का परिचायक माना जाने लगा है। वस्त्र एवं परिधान शरीर को धूप, गर्मी, ठंड, नमी, धूल तथा चोट आदि लगने से रक्षा करते हैं। पहनने के अतिरिक्त कपड़ा मनुष्य के और भी बहुत से कामों में आता है।

आज के मानव ने अपने शरीर की रक्षा हेतु सभी प्रकार की जलवायु, मौसम एवं रीति रिवाजों के अनुसार व उत्सव एवं शौक के लिए वस्त्रों का निर्धारण कर रखा है तथा अपनी आवश्यकता की पूर्ति हेतु चार प्रकार से वस्त्रों को तैयार करने लगा है:

1. वनस्पति तन्तु  2. प्रारगीय तन्तु  3. मानवकृत या कृत्रिम तन्तु  4. धातुमय तन्तु

भिन्न प्रकार के तंतु से कपड़ा तैयार करके मानव ने अपने शरीर को सुंदर बनाने की चेष्टा और सफलता भी प्राप्त की। वस्त्रों के पहनने के लिए चयन करने एवं वस्त्रों को बनाते समय प्रत्येक देश में वहां के मौसम एवं जलवायु का ध्यान रखना आवश्यक है। अगर मौसम और जलवायु का ध्यान नहीं रखा जाए तो वस्त्र की उपयोगिता नहीं रह पाती है।

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गर्म जलवायु वाले देशों में सूती कपड़े पहने जाते हैं तो ठंडी जलवायु वाले देशों में गर्म कपड़े पहने जाते हैं। गर्म जलवायु वाले देशों में भी पहाड़ी भागों में अधिक ऊंचाई पर ठंड होती है, अतः वहां पर रहने वाले लोगों के लिए गर्म कपड़े पहनना आवश्यक हो जाता है। वस्त्रों को बनाते समय जलवायु के साथ यह ध्यान रखना चाहिए कि जिससे पहनने वाले की त्वचा को किसी प्रकार की हानि न पहुंचे और त्वचा के कार्य को किसी प्रकार की बाधा न पहुंचाए।

त्वचा के संपर्क में ऐसी वस्तु का वस्त्र होना चाहिए जो सर्दी में शरीर किताब को नष्ट न होने दें और उसकी रक्षा करें। गर्मी के मौसम के लिए वस्त्र ऐसा होना चाहिए जो बाहर के ताप को शरीर तक न जाने दे। साथ ही वस्त्र में आद्रता सोखने का भी गुण होना चाहिए क्योंकि त्वचा में सदा कुछ जल का वाष्पन होता ही रहता है। इसको अदृश्य स्वेदन कहते हैं।

वस्त्र इस स्वेदन को सोखते रहना चाहिए, अतएव इससे यह स्पष्ट होता है कि जाड़े और गर्मी दोनों मौसमों के लिए एक ही प्रकार के वस्त्र उपयुक्त नहीं हो सकते हैं। उनमें यह गुण पर्याप्त मात्रा में होता है कि वह शरीर के साथ को बाहर नही निकलने देता है। इसके साथ ही साथ रुई से बने हुए वस्त्र ताप की किरणों का बाहर से परावर्तन कर देते हैं अर्थात आपको तथा तक नहीं पहुंचने देते हैं।

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गर्मी के मौसम में जालीदार बनियान और ठंड के मौसम में साधारण बनियान पहनने से शरीर का तापक्रम ठीक रहता है। बनियान के अतिरिक्त अन्य वस्त्रों को पहनने के लिए भी यही सिद्धांत है। ऊन से बने वस्त्र ताप रोधक होते हैं ऊनी वस्त्र न तो बाहर से ठंड को भीतर जाने देते हैं और न भीतर के ताप को बाहर विसर्जित होने देते हैं।

लेकिन सूती वस्त्र इन क विरुद्ध कार्य करते हैं। सूती वस्त्र बाहर का ताप परावर्तित करके लौटा देते हैं और भीतर किताब को भी बाहर निकालने में सहायक होते हैं। इस प्रकार शरीर के पसीने के वाष्पन से शरीर ठंडा हो जाता है। अपनों के प्रकार एवं गुण पर रंग का भी बहुत प्रभाव होता है। काला रंग सूर्यताप को सबसे अधिक ग्रहण करता है।

सफेद रंग सूर्यताप को सबसे कम ग्रहण करता है। तरह के विभिन्न रंगों के कारण कपड़ा गरम वह ठंडा हो जाता है। भारत वर्ष सन 1947 के पूर्व अंग्रेजी राज्य का एक अंग था और तब का भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि मिलकर भारत वर्ष कहलाता था।

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लेकिन अंग्रेजों ने अगस्त 1947 में तथा कुछ इससे पूर्व भारत का विभाजन करके भारतवर्ष को कई भागों में विभक्त कर दिया जो आज अलग-अलग देशों के नाम से जाने जाते हैं। हमारा भारत एक संघीय राज्य हैं और इस संघ में कुल 22 से अधिक राज्य तथा लगभग 8 केंद्र शासित प्रदेश है।

जलवायु के अनुसार भारत का विभाजन करते समय हम देखते हैं कि भारत में सभी प्रकार की जलवायु मिलती है। भारत में कुछ भाग्य ऐसे हैं जहां पर सबसे अधिक वर्षा होती है तो इसके विपरीत यहां कुछ भाग ऐसे भी है जहां पर पूरे वर्ष भर में 10 सेंटीमीटर वर्षा भी मुश्किल से होती है।

उत्तर में हिमाचल प्रदेश , जम्मू और कश्मीर मैं हर समय मौसम में ठंड रहती है तो मुंबई आदि समुद्र तट भर्ती प्रदेशों में हमेशा एक सा मौसम, न अधिक ठंड होती है न अधिक गर्मी। इन प्रदेशों के रीति रिवाज और पहनावा वहां के मौसम के अनुसार तथा पैदावार के अनुसार होता है।

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मद्रास, केरल, आंध्र प्देश में अधिकतर पैदावार चावल की होती है। यहां की ग्रामीण जनता खेतों में काम करती है, उन्हें पानी भरते हुए खेतों में काम करना पड़ता है, अतः वह के मौसम के अनुसार कुछ इस प्रकार के रीति रिवाज हो गए हैं, की कमर से नीचे पहने जाने वाली पोशाके पिंडली तक ही पहनी जावे। ये पूसा के नर एवं नारियों के लिए घुटने तक के आसपास पिंडलियों तक होती है, वह पिंडलियों तक ऊंची पहनी जाती है।

पुरुष जो लुंगी पहनते हैं उसे भी कमर पर डाल कर दोहरा कर लेते हैं। इस प्रकार की प्रथा आज तक प्रचलित है। लेकिन आजकल की शिक्षा के प्रसार एवं विदेशी पोशाकों के प्रसार से शिक्षित वर्ग में इस प्रकार की नवीन पोशाकों को अपनाने की प्रवृत्ति पनप रही है।

उत्तरी भारत में तथा दक्षिणी भारत में जहां पर गर्मी अधिक पड़ती है, प्रत्येक मौसम में सूती कपड़े पहने जा सकते हैं। इन सूती कपड़ों के साथ ही साथ रेशमी कपड़े त्योहारों और उत्सवों के समय पहने जाते हैं। के मौसम में ऊनी कपड़े पहने जाते हैं।

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हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर पंजाब, उत्तरप्रदेश तथा असम आदि प्रदेशों में ऊनी कपड़े की पोशाके पहनी जाती है। पहाड़ी स्थानों पर ठंड अधिक पड़ती है, अतः वहां पर भी ठंड के मौसम में उन्हीं कपड़े पहने जाते हैं।

आजकल भारत के समस्त प्रदेशों में शिक्षित वर्ग में हम विभिन्न प्रकार की पोशाकों का प्रचलन देखते हैं। पुरुष वर्ग साधारण कुर्ता और पजामा पेंट और कमीज, पेंट और ब्रुश शर्ट आदि गर्मी के मौसम में पहनते हैं। सर्दी के मौसम में उपर्युक्त पोशाकों के साथ-साथ जहां जहां ठंडा मौसम होता है वहां पर कमीज और पेंट के साथ ऊनी कपड़ों का कोट ऊनी कपड़े की पेंट आदि पहनते हैं।

महिलाएं साधारणतया धोती, ब्लाउज, कोट सलवार, कुर्ता, चुन्नी आदि पहनती है। कुछ त्योहार ऐसे हैं जो कि संपूर्ण भारत में मनाए जाते हैं एवं कुछ त्योहार ऐसे हैं जो भारत के अलग-अलग प्रदेशों में बहुत ही आनंद और उत्साह के साथ मनाये जाते हैं।

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दशहरा, दीपावली तथा ईद आदि का त्योहार भारत के सभी प्रदेशों में मनाया जाता है। इन त्योहारों पर व्यक्ति अपने लिए कुछ न कुछ नए वस्त्र बनवाने का प्रयत्न करता है। होली का त्योहर ऐसा है जो भारत के प्रत्येक गांव में मनाया जाता है और गुलाब व अबीर आदि द्वारा खूब आनंद से मनाया जाता है।

उत्तर भारत में भी उत्तर पूर्व और उत्तर पश्चिम के भागों की पोशाकों में काफी अंतर है। पंजाब के लोग सिर पर पगड़ी पहनते हैं तथा महिलाएं सलवार और कुर्ता पहनती है तो चंबे रहने वाले लोगों का धोती कुर्ता एक भारतीय पोशाक गिना जाने लगा है। इसका प्रचलन भारत के समस्त प्रदेशों में भी है लेकिन प्रत्येक प्रांत में इसमें कुछ न कुछ बदलाव है।

दक्षिण भारत में कुर्ते की लंबाई कम होती है तो बंगाल और पंजाब में इसकी लंबाई अधिक होती है कश्मीर में कुर्ता अधिक लंबा और अधिक ढीला पहना जाता है।

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