सिलाई कला क्या है ? सिलाई कला का परिचय तथा सिलाई कला का इतिहास एवं विकास और आधुनिक युग में सिलाई कला का महत्व
सिलाई कला क्या है ? सिलाई कला का परिचय
सिलाई कला क्या है ? सिलाई कला का परिचय
इस लेख में विस्तृत रूप से जानिए सिलाई कला क्या है ? सिलाई कला का परिचय :
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में रहता है। उसे अपने जीवन यापन के लिए धन की आवश्यकता पड़ती है। धन किसी ने किसी व्यवसाय अथवा उद्योग द्वारा प्राप्त किया जाता है। यह व्यवसाय कई प्रकार के हो सकते हैं जैसे व्यापार करना नौकरी करना , काष्ठ कला , लोहार का कार्य , काटना और बुन्ना , सिलाई कला , कृषि , मिट्टी कुट्टी का कार्य आदि।
इन सब कलाऊ में सिलाई कला का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। वस्त्र को कलात्मक ढंग से काटना एवं उसको हाथ की सिलाई मशीन की सिलाई से तैयार कर , नर व नारियों , बालक व बालिकाओं आदि के शरीर पर पहनने योग्य बनाना ही सिलाई करना है।
यह कलाम मनुष्य जीवन की प्रमुख आवश्यकताओं में से एक है और इसकी आवश्यकता एक गरीब से लेकर बहुत बड़े धनी मनुष्य तक को होती है। यही कारण है कि यह व्यवसाय बड़े से बड़े शहरों से लेकर छोटे से छोटे ग्राम तक में चलता है।
आज मनुष्य फैशन व सभ्यता के विचार से तथा शरीर की उग्रता एवं सौंदर्य को बनाए रखने के लिए पोशाक पहनता है।
सिलाई कला का इतिहास एवं विकास
एक समय था जबकि मनुष्य सभ्यता और वह जंगलों में कंदमूल फल खा कर अपना जीवन निर्वाह किया करता था। धीरे-धीरे उसका विकास हुआ और अपने अंगों को वह पेड़ के पत्तों तथा साल से दिखने लगा इसके पश्चात और विकास हुआ तथा वह खेती करने लगा। खेती में वह कपास उत्पन्न करने लगा और उसके रेसे से कपड़ा बुनने लगा। कपड़े को शरीर पर पहनने के लिए आरंभिक काल में मनुष्य कमर से नीचे धोती की तरह वस्त्र पहनते थे और कमर से ऊपर के भाग में कुछ ढीला वस्त्र पहनते थे।
नारियां कमर से नीचे साड़ियां पहनती थी , इसे ही कंधे के ऊपर भी पहनती थी। कमर के ऊपर स्तनों पर जो वस्त्र पहना जाता था उसे कंचोली नाम से जाना जाता था।
हमारे प्राचीन वेदों , रामायण और महाभारत में भी सिले हुए वस्त्रों का वर्णन मिलता है। सन 1922 में अखंड भारत में मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के उत्खनन से प्राप्त अवशेषों और मुद्राओं में पात्रों पर अंकित चित्रों से प्रतीत होता है कि सिलाई कला सिंधु घाटी सभ्यता के समय से प्रचलित है। लेकिन सर्वसाधारण में इस कला का प्रचलन अधिक नहीं था। महाराजा हर्ष के समय वाग्भट निकले हुए वस्त्रों का वर्णन किया है।
मुस्लिम काल: हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बाद भारतवर्ष में मुसलमानों का राज्य स्थापित हुआ। यह लोग कपड़े पहनने के बहुत शौकीन थे। यह लोग हाथ से सिलाई अच्छी से अच्छी कराने लगे तथा बेल बूटे भी निकलवा कर पहनने लगे। परंतु यह कला ज्यादा विकसित नहीं हो सकी क्योंकि हाथ से सिलाई महंगी पड़ती थी। अतः यह कला अमीर लोगों तक किया धनी लोगों तक ही सीमित रही और जनसाधारण तक नहीं पहुंच सकी। लेकिन धीरे-धीरे इस कला को लोगों ने सीखना प्रारंभ किया।
ब्रिटिश काल: मुसलमानों की राज्य के बाद भारत में अंग्रेजों का राज्य स्थापित हुआ ठंडे देशों में रहने वाले होने से इनको वस्तुओं की आवश्यकता अधिक पढ़ती थी। अपने शरीर की रक्षा हेतु वस्त्रों को बनाने की कला को अधिक लोगों ने सिखा। इसलिए इस कला का और भी विकास हुआ तथा मशीन के आविष्कार से अधिक विकास हुआ। नगरों और शहरों में जनसाधारण ने इसे अपनाया। इस प्रकार लगातार परिजनों और लगन से कार्य करने से इसका बहुत अधिक विकास हुआ।
आधुनिक काल: भारत की स्वतंत्रता के साथ कि भारत सरकार ने हस्तकला को प्रोत्साहन देना आरंभ किया। लघु उद्योगों के द्वारा सिलाई मशीनें भारत में भी बनने लगी और जनसाधारण को मशीनें आसानी से वह सस्ते भाव पर मिलने लगी। इससे भी इस कला को बहुत प्रोत्साहन मिला और आज भारत में ही नहीं संसार के सभी भागों में मानव इससे लाभान्वित हो रहा है।
आधुनिक युग में सिलाई कला का महत्व
आधुनिक युग में सिलाई कला का एक महत्वपूर्ण स्थान है जो निम्नलिखित विवरण से स्पष्ट हो जाता है:
1. मानसिक दृष्टिकोण से: अन्य उद्योगों को सीखने के लिए बुद्धि की ज्यादा आवश्यकता पड़ती है और समय भी ज्यादा लगता है, किंतु सिलाई कला एक ऐसा साधारण उद्योग है जिसको आसानी से लगभग 2 वर्ष में सीख कर जीविकोपार्जन किया जा सकता है। सिलाई एक बार कार्य रूप में देखने पर यह करने पर आसानी से आ जाती है। मंद बुद्धि वाला भी इस कला को आसानी से सीख लेता है। बुद्धिमान व्यक्ति इसमें बहुत जल्दी ही सफलता प्राप्त कर के नए-नए डिजाइनों की पोशाक बनाना आरंभ कर देते हैं।
2. शारीरिक दृष्टिकोण से: यह कला शारीरिक दृष्टिकोण से बहुत ही सीधी और सरल है। इस क्लॉक को प्रत्येक मनुष्य सीख सकता है क्योंकि इसमें शारीरिक ताकत की अधिक आवश्यकता नहीं होती और एक जगह बैठे बैठे ही मनुष्य सिलाई का कार्य करके अपना जीवन यापन कर सकता है ।
3. आर्थिक दृष्टिकोण से: इस कला को सीखने के लिए ज्यादा पैसा खर्च नहीं करना पड़ता। इस्लामी यह एक विशेषता है कि गरीब से लेकर आमिर तक इसे आसानी से सीख सकता है।
4. सामाजिक दृष्टिकोण से: मानव समाज में प्रत्येक व्यक्ति को वस्त्रों की आवश्यकता होती है। इसलिए सिलाई के कार्य करने वालों की ज्यादा मांग होती है। इस कला को सीखने वालों को ज्यादा प्रोत्साहन मिलता है। आज आधुनिक युग में तो इस कला की इतनी मांग है कि जो पूरी भी नहीं हो पा रही है। समाज का हर व्यक्ति इस कला से बने हुए वस्त्रों को पहनकर ही समाज में अच्छी तरह से रह सकता है। इसलिए सामाजिक दृष्टिकोण से भी इस कलाकार निकला हूं से ज्यादा महत्व है।
उपरोक्त बातों से सिद्ध होता है कि सिलाई कला का वास्तव में आधुनिक युग में बहुत महत्व है।