सिलाई मशीन का आविष्कार कब और किसने किया था ?

सिलाई मशीन का आविष्कार कब और किसने किया था ?

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सिलाई मशीन का आविष्कार कब और किसने किया था ?
सिलाई मशीन का आविष्कार कब और किसने किया था ?

सिलाई मशीन का आविष्कार कब और किसने किया था ?

 सामान्यता सिलाई मशीन का आविष्कार चार्ल्स एफबी सैंथल ने सन 1776 में किया था। किंतु प्राचीन काल में सिलाई हाथ से की जाती थी। जिससे सिलाई कार्य में अधिक समय व श्रम लगता था। इस कारण सिलाई काफी महंगी पड़ती थी। जनसाधारण अच्छी सिलाई करा कर वस्त्र नहीं पहन सकता था। यह सिलाई की सुविधा अधिकतर अमीर लोगों तक ही सीमित थी। इन कठिनाइयों की ओर वैज्ञानिकों को ध्यान गया।

लेकिन बहुत समय तक लोगों को इसके बनाने की विधि का सही ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ। पहले लोग यही प्रयत्न करते रहे की मशीन के पुर्जे उसी प्रकार चले जिस प्रकार दर्जी का हाथ चलता रहता है।

सिलाई मशीन का आविष्कार / इतिहास

सिलाई कला को सरल बनाने वाले प्रथमा आविष्कारकर्ता चार्ल्स एफबी सैंथल थे। उन्होंने सन 1776 में दो नोंको वाली सुई बनाई, जिसके मध्य में एक छिद्र था। इसलिए सिलाई कला का कार्य कुछ जल्दी जल्दी होने लगा था।

सन 1990 में थांमस सेंट ने सर्वप्रथम सिलाई मशीन का प्रारूप तैयार किया और इंग्लैंड से इसे पेटेंट करवाया। यह मशीन वास्तव में चमड़ा सीने की थी। इस मशीन में एक सुजा लगा हुआ था जैसा कि मोची काम में लेते हैं। मशीन में लगे हुए इस सूजे से चमड़े में छेद हो जाया करता था। तब पिन जैसे औजार से धागे का फंदा पिरोया जाता था और नीचे से खींच कर कस दिया जाता था इस प्रकार टाका लग जाया करता था।

इसके पश्चात सन 1830 ईस्वी में फ्रांस के रहने वाले थे और नमक एक गरीब दर्जी ने लकड़ी की मशीन बनाई जिसमें लोहे की मुडी़ सुई लगी हुई थी। इस मशीन का स्वरूप दिखने में बहुत भद्दा था लेकिन सिलाई का कार्य करने के योग्य थी। सन 18 सो 41 में पेरिस की केवल एक फैक्ट्री में लकड़ी की 80 मशीन सिलाई के काम के लिए प्रयोग में आ रही थी और सैनिकों के कपड़े सीने का काम कर रही थी।

लोगों को इस मशीन से जलन हुई और एक दिन भीड़ ने गुस्से में सब मशीनों को तोड़फोड़ कर आग लगा दी। और बनाने वाले को मार मार कर अधमरा कर दिया था। इस अग्निकांड में मशीनें जलकर राख हो गई।थिमोनियर ने इतना सब कुछ होने पर भी साहस नहीं छोड़ा। उसने अपनी मशीन में सुधार किए और धातु की मशीन तैयार की। परंतु लोगों का ध्यान इस ओर अधिक आकर्षित नहीं हुआ।

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और इसके कुछ समय पश्चात ही थिमोनियर अपने अविष्कार का लाभ उठाएं बिना ही इस संसार को छोड़कर चले गए। उसके पश्चात एलिस हो ने सिलाई मशीन के आविष्कार को पूर्ण रूप सफल बनाया। एलिस हो रुई की मशीन बनाने के कारखाने में काम करता था रात को वह अपने घर पर ही सिलाई मशीन की तरह तरह के नमूने तैयार करता रहता था, क्योंकि वह जानता था कि उस समय में सिलाई मशीन की बहुत आवश्यकता थी।

कई वर्षों तक वह ठंडी रातों में आधा भूखा रहकर भी प्रयत्न करता रहा प्रारंभ में दूसरे आविष्कार करता हूं की तरह उसने भी मशीन की सुई उसी तरह बनाई जैसी हाथ की सुई होती है, जिसमें मोटी तरफ छेद होता है। 3 वर्षों के कठिन परिश्रम के बाद भी वह सफल रहा। एक रात को 1:00 तक कर और निराश होकर सो गया। उसने सपने में देखा कि राजा ने उसे आज्ञा दी है की वह 1 दिन में सिलाई की मशीन तैयार कर के दे वरना उस को मृत्युदंड दिया जाएगा।

वह मशीन नहीं बना सका, इसलिए जल्लाद उसे मृत्युदंड की ओर ले जाने लगे उस समय सपने में ही एलिस होने जल्लादों के पास जो बरछे (एक प्रकार की तलवार) देखें उनके फल में छिद्र था। चित्र में अपनी नसों के तंतु को देखकर सपने से एलिस हो उठ गया और उसने मशीन में आधुनिक ढंग से सुई के आगे के भाग में खड़ा कर दिया। जिससे सिलाई मशीन अच्छी तरह से कार्य करने लगी।

एलिस हो के पास धन का बहुत अभाव था और वह अपनी मशीन का लाभ नहीं उठा सकता था। उसने 1846 ने अपनी मशीन को पेटेंट अवश्य करा लिया लेकिन उपयोगकर्ताओं को अपनी और आकर्षित नहीं कर सका। उसने अपने अधिकार इंग्लैंड के टॉमस नामक एक धनवान दर्जी को बेच दी गई। इसके पश्चात तो मशीन सिलाई मशीन के आवश्यक सुधार करने के लिए एलिसो को साप्ताहिक मजदूरी देकर काम करने के लिए रख लिया।

कुछ समय पश्चात अपनी पत्नी की बीमारी के कारण एलिस हो इंग्लैंड से अमेरिका चला गया। रास्ते में खर्चे के लिए उसे धन उधार लेना पड़ा, जबकि दूसरे लोग उसके अविष्कार की नकल करके अच्छा धन कमा रहे थे। अतः उसने उन लोगों पर, जो उसकी मशीन की नकल कर रहे थे, अभियोग चलाया। अंत में विजय एलिस हॉक हुई। इस बीच एलिस हो की पत्नी का स्वर्गवास हो गया। लगभग 13 वर्ष तक एलिस हो को उसके आविष्कार का इच्छा अनुसार फल मिलता रहा और इस अल्प समय में उसने काफी धन कमाया।

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सन 1851 में आयोजक मेरिट सिंगर ने अमेरिका में अपनी मशीन को सिंगर नाम से पेटेंट कराया। यह मशीन अब तक बनी मशीनों में सबसे सुंदर बनी थी व सिलाई कार्य बहुत ही सुचारु रुप से करती थी। आजकल यही मशीनें हाथ और पैर के स्थान पर विद्युत शक्ति से भी चलती है।

सन 1862 में जर्मनी के पफ नामक व्यक्ति ने एक सिलाई मशीन तैयार की जो कि बहुत मजबूत थी। इन दोनों मशीनों का संसार के सभी देशों में खूब प्रचार-प्रसार हुआ। भारतवर्ष में भी स्वतंत्रता से पूर्व इनका बहुत प्रयोग किया जाता था।

भारत में सबसे पहले बनने वाली सिलाई मशीन थी ?

विदेशों से मशीनें लाने से भारत को बहुत नुकसान होता था। विदेशी मशीनों के बदले मुद्रा के रूप में सोना या कोई अच्छी वस्तु सस्ते भाव में विदेशों को भेजनी पड़ती थी इस कारण भारत में मशीनें बनने लगी। परंतु प्रथम आविष्कार में अच्छी किस्म की मशीनें नहीं बनने से विदेशी मशीनों की बराबरी नहीं कर सकी और कंपनी असफल हो गई। धीरे-धीरे भारत में और कंपनियां स्थापित हुई जिनमें अच्छी किसम की मशीनें तैयार होने लगी। जैसे भारत में सबसे पहले बनने वाली ऊषा मशीन, मेरिट मशीन, फिल्टर मशीन, उत्तम मशीन , सूरज मशीन इत्यादि।

अब अच्छी किस्म की मशीनें बहुतायत से तैयार होने लगी। भारत की मांग पूर्ण करके, दी जय इंजीनियरिंग वर्क्स कोलकाता द्वारा निर्मित ऊषा मशीन विदेशों में भी जाने लगी है। इससे विदेशी मुद्रा हमारे देश में आने लगी है। इसके अतिरिक्त सिलाई मशीन ने पंजाब में लुधियाना और हरियाणा में सोनीपत में भी बनाई जाती है।

भारत में ऊषा मशीन का कारखाना कहां है ?

वर्तमान समय में भारत में सिलाई मशीनों के अनेक कारखाने स्थापित है जिनमें बेंगलुरु, कर्नाटक, पंजाब तथा हरियाणा प्रमुख है। भारत में ऊषा मशीन का कारखाना तमिलनडु के कोलकाता शहर में स्थित है।

सर्वप्रथम किस मशीन का आविष्कार हुआ ?

सिलाई की मशीन मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है जिनमें बिजली की मशीन, हाथ से चलने वाली मशीन तथा पेड़ से चलने वाली मशीन आती है। लेकिन इन सभी मशीनों में सर्वप्रथम हाथ से चलने वाली मशीन का आविष्कार हुआ था।

सिलाई मशीन कितने प्रकार की होती है ?

सिलाई मशीन तीन प्रकार की होती है:

1. हाथ की सिलाई मशीन: ये मशीनें परिवार की महिलाएं हाथ से चलाती है। आधुनिक युग में लगभग प्रत्येक परिवार के पास मशीनें उपलब्ध है, जिससे महिलाएं अपने परिवार के कपड़े सिल कर तैयार कर लेती है।

2. पैर की सिलाई मशीन: ये मशीन पैर से चलाई जाती है। दुकानों, फैक्ट्रियों तथा कंपनियों में इससे सिलाई की जाती है। उसके 2 भाग होते हैं पहला मशीन और दूसरा पांवदान। इससे काम करने से कारीगर के दोनों हाथ मुक्त रहते हैं जो कि वस्त्र बनाने में सहायक होते हैं। इससे कार्य जल्दी और सुंदर होता है।

3. बिजली की सिलाई मशीन: यह मशीन भी पैर वाली मशीन की तरह ही होती है। इससे मानव को शक्ति का खर्च नहीं करना पड़ता। पीर के पास ही एक बटन लगा होता है जिसको दबाते ही मशीन खुद ही चलती है और बटन को छोड़ते ही बंद हो जाती है। इससे लंबा टीका लगाया जाता है। लेडीस कपड़ों पर बेल बूटी भी इससे निकाले जाते हैं। वर्तमान समय में इसका प्रचलन बहुत बढ़ गया है।

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